Sunday, 7 June 2020

शास्त्रवाद


शास्त्रवाद


क्लासिजम को हिंदी में शास्त्रवाद, शास्त्रियवाद , अभिजात्यवाद आदि नामों से जाना जाता है क्लासिजम  मूल्यतः लैटिन भाषा का शब्द है ।क्लासिकस शब्द का प्रयोग रोम में करदाताओं के सर्वोच्य वर्ग के लिए किया जाता था। क्लासिक साहित्य रचना का सम्बन्ध मूलतः क्लास या वर्ग विभाजन के इतिहास से है। दूसरी शताब्दी में लैटिन के लेखक 'ओलस जेलियस ' ने अपनी पुस्तक ' नॉक्टिस एटिस' में दो प्रकार के लेखकों का उल्लेख किया है। 
  • स्क्रिप्टर क्लासिक्स यानि सुसंस्कृत एवं अभिजातवादी या इलिट सोसाइटी के लिए लिखने वाला अभिजात्य लेखक ।
  • स्क्रिप्टर त्रोलेटेरियस  यानि जनसाधारण एवं असंस्कृत लोगों के लिए लिखने वाला जनवादी लेखक।

पहले प्रकार के साहित्य को उच्च वर्ग का संरक्षण प्राप्त होता था । यह साहित्य उच्च वर्ग की संस्कृति से सम्बंधित परमार्जित और शास्त्रबद्ध साहित्य होता था । ऐसे अभिजात्यवर्ग साहित्य की मूल्यवत: को मान्यता देने तथा उसका अनुकरण करने की प्रवृति के कारण ही इसका नाम अभिजात्यवाद पड़ा है ।
लेटिन भाषा साहित्य में रैननसा काल  (पुनर्जागरण) तक अभिजात्यवादी साहित्य को विश्वविद्यालय स्तर पर पढ़ा जाने वाला तथा साहित्यिक विद्वानों के पठन-पाठन का प्रमुख साहित्य माना जाता था। फलस्वरूप उस समय तक यूनान की प्रसिद्ध साहित्यिक कृतियाँ ही अभिजातवादी समझी जाती थी
       क्लॉसिजम शब्द का एक प्रयोग ऐतिहासिक युग के अर्थ में भी किया गया । काफी समय तक यह धारणा बानी रही , कि कालजयी (जो हर समय जीवित रहे ) कृतियों कि रचना  (गोदान , महाभारत ) केवल ग्रीक एवं लेटिन में हुई है । अतः इस शब्द  का प्रयोग ऐतिहासिक श्रेणी के रूप में एक ऐसे युग के लिए भी किया जाता रहा है । जिसमे श्रेष्ठ या कालजयी साहित्य की रचना हुई हो । आरम्भ में प्राचीन ग्रीस और रोम की संस्कृति और इतिहास की अध्ययन की प्रवृति को तथा ग्रीक और लैटिन की रचनाओं एवं रचनाकारों के आदर्श का अनुकरण करने और उनके टक्कर की कृतियों के रचने की प्रवृति को भी क्लासिसिजम कहा गया हैं । वर्तमान  में इस शब्द से किसी वर्ग विशेष की कला अथवा साहित्य का बोध नहीं होता। किन्तु कल क्रम में कुछ विशेष प्रकार की कलात्मक और साहित्यिक प्रवृतियों तथा रचनाओं के लिए यह शब्द रूढ़ हो गया है । रोमन साहित्यकारों  ने अपने प्राचीन साहित्यकारों के वैभवपूर्ण उदात्त साहित्य को दृष्टि में रखकर कुछ मान्यताएं स्थापित की  थी :--- 
  • वर्त्तमान कल से पूर्वति साहित्यकार उत्थान के चरम को सपर्श कर चुके है।
  • अतः वर्तमान साहित्यकार का साहित्यिक दायित्व  है की उन्ही पूर्वति साहित्यकारों का अनुकरण करें।
  • साहित्यिक अनुकरण में उन प्राचीन कृतियों के शिल्पानुशासन का पूर्णतः पालन किया जाना चाहिए।

इस  प्रकार ग्रीक और रोम में होरेस , बोकेशियो , सिसरो , डिमेट्रियस आदि ने ग्रीक रचनाओं का अनुकरण किआ और क्लासिक परम्परा का विस्तार किया।  पश्चिम में क्लॉसिजम की पद्धति के कालजयी श्रेष्ट कृतियों के अनुकरण तथा शस्त्रवीहित सिद्धांतो के श्रद्धापूर्वक अनुकरण के आग्रह के साथ सामने आई।   क्लॉसिजम की शुरुआत ईसा पूर्व पहली शताब्दी में एक दम स्पष्ट हो चुका था।  ईसा  की पांचवी शताब्दी तक साहित्य चिंतन में इसका कुछ न कुछ प्रभाव बना  रहा।  संस्कृत के श्रेष्ट साहित्य के लिए क्लासिकल लिटरेचर पद का प्रयोग भी लगभग इसी अर्थ में हुआ हैं।  साहित्य चिंतन के साथ क्लॉसिजम पद का प्रयोग विशेष युग  और उसके द्वारा रचित साहित्य के अर्थ में सीमित न रहकर सर्वकालिक और सार्वभौमिक हो गया।  मध्ययुगीन यूरोप, फ्रांस तथा इटली के आलोचक इस परम्परा के हिमायती रहे। शास्त्रवाद को अनेक पाश्चात्य विद्वानों जैसे :शिलर,मैथ्यू अर्नाल्ड,एबर क्राम्बी, इलियट आदि ने अपने अपने अनुकूल और समुचित रूप से परिभाषित किया है।  इन सभी का निष्कर्ष इस प्रकार है।

  • भव्य विचार अवं लोक कल्याण की भावना तथा मानव जीवन की शाश्वत समस्याओं का प्रस्तुतिकरण अभिजात्यवादी सहित का मुख्य कथ्य है।
  • कवि के व्यक्तित्व अवं अनुभूति के चित्रण के स्थान पर वस्तुनिष्ठ कथ्य के प्रस्तुतीकरण पर बल दिया जाता है।
  • प्राचीन आचार्यों के अनुकरण से काव्य सिद्धि की प्राप्ति तथा परपंरा का निर्वाह होता है।
  • उदात्त भाषा शैली का प्रयोग करते हुए शैलीगत परिमार्जन को कथ्य से भी प्राथमिकता मिलनी चाहिए। 
  • विषय तथा रूप के समुचित संतुलन का निर्वाह करना चाहिए। 
  • भावनाओं की अराजकता (लापरवाही ) को व्यवस्थित करके शैली में कठोर संयम का पालन करना चाहिए। 


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