उपन्यास का व्युत्पत्तिपरक अर्थ है, उप यानि समीप न्यास यानि रखना अर्थात समीप रखना या मनुष्य के निकट रखी हुई वस्तु या वह वस्तु या कृति जिसको पढ़कर लगे की वह हमारी ही है , उपन्यास में मानव जीवन अपेक्षातर अधिक समीपता के साथ चित्रित होता है। न्यू इंग्लिश डिशनरी में नॉवल की परिभाषा इस प्रकार दी गई है। "नॉवल वह विस्तृत गद्यात्मक आख्यान प्रधान रचना है, जिसमे वास्तविक जीवन की घटनाओं का अनुकरण और पात्रों का एक व्यवस्थित कथावस्तु के रूप में वर्णन रहता है।" वस्तुत: उपन्यास आधुनिक जीवन का गद्यात्मक महाकाव्य है, जीवन की जटिलता और अंतर विरोध को जितनी समग्रता से उपन्यासों में चित्रित किया जा सकता है। उतनी समग्रता से किसी अन्य साहित्यिक विधा में नहीं। सामान्यत: सामाजिक संरचना की एक समानान्तरता उपन्यासों में दिखाई पड़ती है। यही कारण है कि समाजशास्त्रीय अध्ययन के लिए मुख्यत: उपन्यासों का ही चुनाव किया जाता है।
मुंशी प्रेमचंद उपन्यास को वास्तविक जीवन की काल्पनिक कथा मानते है, उनके अनुसार "मैं उपन्यास को मानव जीवन का चित्र मात्र समझता हूँ। मानव चरित्र पर प्रकाश डालना और उसके रहस्यों को खोलना ही उन्यास का मूल तत्व है। " डॉ. गोपाल राय यूरोप में उपन्यासों की रचना के लिए औद्योगिक क्रांति से उत्पन्न पूँजीवाद और मध्यवर्गीय पाठक चेतना को उत्तरदायी माना जाता है। भारत में इस प्रकार की परिस्थितियाँ औपनिवेशिक शासन के बाद निर्मित हुई। भारतीय नवजागरण से हिंदी उपन्यास के विकास का गहरा सम्बन्ध है चूँकि बंगाल और महाराष्ट्र की तुलना में हिंदी नवजागरण की प्रक्रिया कुछ बाद में आरम्भ हुई इसीलिए हिंदी उपन्यास का विकास भी बांग्ला और मराठी के कुछ बाद में हुआ। हिंदी में नॉवल के अर्थ में उपन्यास शब्द का प्रयोग 1875 ई. में पंडित बालकृष्ण भट्ट ने किया था, जबकि बांग्ला में नॉवेल के अर्थ में उपन्यास शब्द का पहला प्रयोग भूदेव मुखोपाद्याय 1862 ई. में किया था।
आरम्भिक हिंदी उपन्यास या प्रेमचन्द पूर्व हिंदी उपन्यासों का समय 1877 - 1918 ई. तक माना जा सकता है। 1877 ई. में श्रद्धा राम फुलोरी ने भाग्यवती नामक सामाजिक उपन्यास लिखा था। यह भले ही अंग्रेजी ढंग का मौलिक उपन्यास न हो किन्तु विषय- वस्तु के आधार पर इसे हिंदी का प्रथम आधुनिक उपन्यास है। पंडित गोबिंद दत्त की रचना 'देवरानी- जेठानी' भी एक शिक्षा प्रधान उपदेशात्मक रचना है। जिसका प्रकाशन 1870 ई. में हुआ था। किन्तु इसे उपन्यास कहने में आलोचकों ने संकोच किया है। दरअसल लाला श्रीनिवास दास का अंग्रेजी ढंग का नॉवेल 'परीक्षा गुरु (1882)' और श्रद्धा राम फुलोरी का 'भाग्यवती ' ही हिंदी के आरम्भिक उपन्यासों के रूप में रेखांकित किए जाते है।
आलोचकों ने उपन्यास के छः तत्व माने है : कथानक ,चरित्र या पात्र , संवाद, देशकाल , शैली और उद्देश्य। कुछ आलोचक घटना को भी एक तत्व मानते है किन्तु इसे कथानक के भीतर समेटा जा सकता है। उपयुक्त तत्व एक - दूसरे पर निर्भर है और एक - दूसरे की सहायता करते है। हम उपन्यास में अपेक्षा करते है। उपन्यास के कथा- वस्तु, विविध प्रसंग या घटनाएं एक सूत्र में इस प्रकार पिरोयी गई हो कि वे अलग - अलग न लगे। प्रेमचंद के पूर्व लिखे गए मौलिक उपन्यासों को 5 श्रेणियों में बाँट सकते है - सामाजिक उपन्यास , ऐय्यारी , जासूसी उपन्यास , ऐतिहासिक उपन्यास , भाव प्रधान उपन्यास । प्रेमचंद को आधार बनाकर हम हिंदी उपन्यास को सुविधा कि दृष्टि से इस प्रकार विभाजित कर सकते है - प्रेमचंद पूर्व उपन्यास, प्रेमचंदयुगीन उपन्यास , प्रेमचंदोत्तर उपन्यास , स्वतंत्रोत्तर उपन्यास , साठोत्तरी उपन्यास। वर्तमान में उपन्यासों का वर्गीकरण दलित चेतना और स्त्री विमर्श में किया गया है।
सारांशतः ज्यों-ज्यों जीवन जटिल और समाज कि विनिमय प्रणाली अमूर्त होती जाएगी। त्यों - त्यों उपन्यास ककी आवश्यकता बढ़ती जाएगी। क्योंकि लुकाच के शब्दों उपन्यास गिरावट से भ्र्ष्ट समाज में मूल्यों कि तलाश का एक सृजनात्मक प्रयास है।