Tuesday, 3 November 2020

उत्तर संरचनावाद

उत्तर संरचनावाद 20 वी. शदी के अंतराल में हुआ।  इस दौर में फ्रांस में उथल - पुथल, विरोध और पारम्परिक मूल्यों से विचलन देखा जा रहा था।  इसी समय में स्त्रीवाद, पश्चिमी मार्क्सवाद, नकारवाद आदि की प्रवृतियां उदित हो रही थी।  कई संरचनावादी विचारक जैसे - देरिदा , माइकल फूकॉलड (फूको ) और रोला बार्थ धीरे-धीरे संरचनावाद की मान्यता का विरोध करते हुए बताया कि - शब्द और शब्द के अर्थ में कोई भी निश्चित संबंधिक अर्थ नहीं होता।  उन्होंने संरचनावाद कि इस मान्यता का भी विरोध किया कि यह अवधारणा जीवन जगत की व्याख्या कर सकती है।  सन 1966 में अपने लेक्चर व्याख्यान में देरिदा ने बताया कि संरचनावाद में बहुत कमियाँ है।  खास कर के रचना केंन्द्रित निश्चित अर्थ को लेकर उन्होंने बताया कि समय के बदलने के साथ जब मनुष्य के चिंता के केंद्र बहुमुखी हो जायेंगे।  तब यह विचारधारा उनकी व्याख्या नहीं कर पायेगी।  इस तरह उन्होंने व्याख्या के लेखक स्थान पर पाठक केंद्रित दृश्टिकोण कि प्रस्तावना की।  रोला बार्थ भी एक स्थापित संरचनावादी थे।  लेकिन उन्होंने लेखक का अंत घोषित कर दिया (द डेथ ऑफ़  ऑथर -  निबंध ) बताया किसी भी साहित्यिक  पाठ में बहुसंख्य अर्थ होते है।  किसी भी रचना की आर्थिक ढांचे तक पहुंचने के लिए केवल लेखक ही एक प्रमाणिक माध्यम नहीं  हो सकता।  उन्होंने बताया रचना के बाहर अन्य स्त्रोत भी होते है।  जिनसे अर्थ निर्धारित होते है।

     इन विचारकों के द्वारा उत्तर संरचनावाद के कई अन्य प्रस्तावक भी हुए जैसे - डेल्यूज , जूलिया क्रिस्टीवा, गोदरिला, बटलर आदि।  इन सभी विचारकों ने उत्तर संरचनावाद को पाठ विश्लेषण की एक ऐसी विधि के रूप में व्याख्यायित किया जो लेखक के बजाय पाठक केंद्र में लाती है।  उत्तर संरचनावाद अर्थ के अन्यान्य स्त्रोतों जैसे - पाठक , सांस्कृतिक मान्यताएँ इन का विश्लेषण करता है।  ये सभी स्त्रोत और इनसे उपजे हुए अर्थ सतत परिवर्तनशील है और रचना  से निकलने  वाले किसी  भी प्रकार की अंतर्संगति या अंतरसंबंध का दावा नहीं करते।  इसलिए एक रचना की व्याख्या में एक पाठक के समाज या संस्कृति का एक लेखक की समाज की संस्कृति में बराबर योगदान होता है।  उत्तर संरचनावाद की कुछ महत्वपूर्ण स्थापनाएं है। 

1 : स्व: की अवधारणा एक एकांगी अवधारणा नहीं है।  एक व्यक्ति के व्यक्तित्व में कई विरोधी तनावों , विचारों तथा लिंग , जाति , वर्ग  , व्यवसाय का क्रियाशील रूप देखा जा सकता है।  अत: किसी भी रचना का अर्थ पाठक की अपनी स्व: की अवधारणा पर निर्भर करता है। 

2: लेखक का अभिप्रेत अर्थ पाठक द्वारा ग्रहण किए गए अर्थ से गौड़ होता है और किसी भी रचना का कोई एक निश्चित उद्देश्य या अर्थ नहीं होता। 

3: किसी भी रचना की व्याख्या करने के लिए किसी भी रचना की बहु - आयामी व्याख्या करने के लिए विविध सन्दर्भों का इस्तेमाल किया जाना अनिवार्य है। 

जो किसी भी रचना की व्याख्या के  लिए समान रूप से महत्वपूर्ण है। 


🔖3form of the Verb🔖

📖   THREE FORMS OF THE VERB 📖 V1 (Main verb) V2 V3 Begin Began Begun ...